An ode to my mother - A Teachers' Day tribute

An ode to my mother – A Teachers’ Day tribute

By Sakshi Upadhyay

माँ सिर्फ एक शब्द नहीं है,

एक अनुभूति है , एहसास है

निराशा के पलों में मन का विश्वास है

जैसे बारिश के बाद हवा में किसी ने घोली मिठास है।

कभी सोचा है तुमने अपनी माँ के बारे में

कि बचपन में वो कैसी थी ,

जो आज इतनी समझदार दिखती है

क्या वो भी करती थी नादानियाँ सहेलियों संग ,

क्या उसने भी तैराई है बारिश के पानी में कागज़ कि नाव

बेखबर अनजान इस दुनिया से मस्त मलंग।

जो तुम्हारी एक एक पसंद- नापसंद को ध्यान में रखती है

जिसकी दिन की शुरुआत आज भी तुमसे ही होती है

कभी सोचा है तुमने उसको क्या चीज़े भाती है

क्या उसके दिल में है और वो क्या चाहती है।

माँ भगवान का रूप है सारी दुनिया कहती है

सब कहते हैं उनके चरणों में जन्नत बसती है।

माँ सर्वोपरि है सर्वश्रेठ है,

इसमें कोई दो राय नहीं

पर माँ को माँ ही रहने दो

उसे भगवान बनाने की भूल ना करो

क्योकि भगवान से कोई नहीं पूछता उनके हालचाल

कोई नहीं लेता ईश्वर से उनके दिल का हाल।

मां को प्रभु का दर्जा देकर भूल जाते है हम

की वो भी है एक जीती जागती इंसान

उसके भी अपने कुछ है आशाएं

उसके सपनों को भी चाहिए एक आसमान

मिले जब फुर्सत के क्षण तो सोचना कभी इन बातो को

कि क्या कभी देखा है तुमने अपनी माँ का एक अलग व्यक्तित्व

जहाँ वो सिर्फ माँ नहीं और भी है बहुत कुछ

जहाँ वो सिर्फ माँ नहीं और भी है बहुत कुछ।

 

Author is a Netherlands based Software Engineer. Loves books, food, travel and everything random.

About The Author

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *