नई दिल्ली: बीते दिनों एक किताब आई है, ‘एक सूरज स्याह सा: अंतर्मन की कहानियां’। नवोदित लेखिका सविता सिंह की यह किताब दिल्ली स्थित प्रकाशन गृह ‘द फ्री पेन’ ने प्रकाशित की है।इसका विमोचन नई दिल्ली के हिंदी भवन में हाल ही में हुआ है। इसमे 10 कहानियां हैं, जिनके जरिए सविता सिंह महिला संसार के उन पहलुओं से परिचय कराती हैं, जो एकदम करीब होकर भी एक समानांतर दुनिया की लगती हैं।
कहानियों के पीछे की कहानी जानने के लिए हमने सविता सिंह से बात की। इस इंटरव्यू के मुख्य अंश यहां दिए गए हैं:
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सवाल: आपको लेखक बनने के लिए किस बात ने प्रेरित किया और इस यात्रा की शुरुआत कैसे हुई?
जवाब: लेखक बनने के लिए कभी कुछ नहीं लिखा। जो बातें मन को छू जाती, मन को अशांत करती, उसे ही कागज पर लिख लेती। मेरी लेखनी में अभी भी वह उत्साह और जोश है, जो मुझे लेखन के सफर पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।
सवाल: “एक सूरज स्याह सा” एक अद्भुत और रहस्यमय शीर्षक है। क्या आप इसके पीछे छिपे महत्व और प्रतीक को साझा कर सकते हैं?
जवाब: शीर्षक में ही कहानी, पूरी किताब का अर्थ छिपा होता है। सूरज प्रकाश और जीवन का दाता है। जैसे सूरज रात का अंधेरा हटाने के लिए हमें दिन की रोशनी देता है, उसी तरह जीवन के गमगीन समय में मन उम्मीद की किरणें जगाता है।
सवाल: आपका किताब भारतीय रूढ़ियों से गहराई से जुड़ी है। लिखते समय भारतीय जीवन और परंपराओं के किन पहलुओं ने आपको प्रेरित किया?
जवाब: प्रेरणा तो जीवन के हर पहलू से मिलती है। ऐसे किसी एक को उल्लिखित करना मुश्किल है। मैंने अपने आस-पास के लोगों के अनुभवों से भी प्रेरणा ली और भारतीय संस्कृति और धरोहर को अपनी कथा में सम्मिलित किया।
सवाल: आपकी कहानियों के पात्रों में भावनात्मक परिवर्तन नजर आते हैं। क्या वे वास्तविक जीवन के अनुभवों से प्रेरित हैं या पूरी तरह से कल्पित हैं?
जवाब: पात्रों का भावनात्मक परिवर्तन देखा और अनुभव किया हुआ है। पूरी तरह काल्पनिक नहीं है। लेखन में इस प्रकार के परिवर्तनों को शामिल करना उन्हें अधिक रियलिस्टिक बनाने में मदद करता है।
सवाल: “एक सूरज स्याह सा” में प्रेम, हानि, और पुनरुत्थान जैसे विषय दिखाई देते हैं। आपने इन विशेष विषयों को ही अन्वेषण के लिए क्यों चुना?
जवाब: जीवन में प्रेम देखने के लिए दूर जाना नहीं पड़ता है। जन्म से लेकर मृत्यु तक उनके दर्शन होता है। प्रेम के दो रूप है। पाना और खोना। इसी को लेकर तो इतने सारे साहित्य और बड़े-बड़े ग्रंथ रचे गए। इसके अभाव में कोई कुछ लिख सकता है क्या।
सवाल: आपके पात्र जीवंत और स्थानीय हैं। वे वैसे काम करते हैं जो अकल्पनीय नहीं लगते। इनका परिदृश्य आपने कैसा गढ़ा?
जवाब: कहानियों में स्थान का सजीव चित्रण कुछ पढ़ कर, कुछ देख कर हुआ। कुछ कहानियों को बिलकुल पास से देखा। मेरे लेखन में स्थान का बड़ा महत्व है और मैंने इसे अपनी कथा में धरोहर के रूप में सम्मिलित किया।
सवाल: कई नए लेखक लेखन प्रक्रिया में चुनौतियों का सामना करते हैं। आपने भी किन-किन बाधाओं का सामना किया और उन्हें कैसे पार किया?
जवाब: बाधाएँ तो कोई न थी। बस, समय का ही तालमेल बिठाना था। वैसे, औरतें हर काम के लिए वक्त निकाल ही लेती हैं। उन्हें परिवार और लेखन के बीच बैलेंस रखना थोड़ा मुश्किल था, लेकिन मैं लिखती रही।
सवाल: “एक सूरज स्याह सा” एक भावनात्मक रोलरकोस्टर होने का दावा करती है। आपने इंतेहाई भावनाओं और रोचक प्लॉटलाइन के बीच संतुलन कैसे बनाया?
जवाब: जो जैसा दिखा वैसा ही लिखा। कुछ कल्पना से किया। यह सीखना नहीं पड़ा। जीवन में की भावनाओं, व्यक्तियों से संवाद, उनके अनुभव सुनकर और समाज में होने वाली गतिविधियों को ध्यान रखकर पात्रों की भावनाओं को संतुलित किया।
सवाल: आप अपनी कहानियों के माध्यम से पाठकों को क्या संदेश देने की उम्मीद करती हैं?
जवाब: मुझे संदेश क्या देना है। कहानियाँ खुद ही बोलती हैं। लेखक अपने लेखन के माध्यम से पाठकों को उन्हें सोचने पर मजबूर करता है और उन्हें समझने का प्रोत्साहन देता है। मेरी उम्मीद है कि यह पुस्तक पाठकों को नई सोच और परिवर्तन की दिशा में प्रेरित करेगी।
सवाल: “एक सूरज स्याह सा” आपकी पहली रचना होने के कारण, उन लेखकों को आप क्या सलाह देना चाहेंगी जो अपनी पहली पुस्तक प्रकाशित करने की इच्छुक हैं?
जवाब: लेखक कोई भी हो नया या पुराना, जो देखता-महसूस करता है, वैसा ही लिखता है। जैसा समाज होता है, वैसा लिखा जाता है। अपने लेखन को समझें, अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करें, और अपने पाठकों के साथ अपनी कहानी को साझा करें।
सवाल: क्या आप वर्तमान में किसी नए प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं?
जवाब: अभी कुछ स्पष्ट नहीं। कई कहानियां हैं। उपन्यास भी हैं। इस वक्त भी मैं अपने अगले उपन्यास की रचना कर रही हूं, जिसमें समाज के विभिन्न पहलुओं को समझने का प्रयास होगा